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कितना गोलमाल है बिहार सरकार के सरकारी एजुकेशन सिस्टम में

<p>बिहार और बिहार के लोगों को लेकर आज भी समाज में निगेटिव छवि बनी हुई है। अन्य राज्य के लोग बिहार के लोगों को ओछी निगाह से देखते हैं उन्हें लगता है बिहार के लोगों का शैक्षिण स्तर काफी निचला है। बिहार के लोग डिग्री धारी हैं लेकिन उनमें ज्ञान का अभाव है। ऐसा नहीं [&hellip;]</p>

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By News Desk
16 September 2023
कितना गोलमाल है बिहार सरकार के सरकारी एजुकेशन सिस्टम में

कितना गोलमाल है बिहार सरकार के सरकारी एजुकेशन सिस्टम में

बिहार और बिहार के लोगों को लेकर आज भी समाज में निगेटिव छवि बनी हुई है। अन्य राज्य के लोग बिहार के लोगों को ओछी निगाह से देखते हैं उन्हें लगता है बिहार के लोगों का शैक्षिण स्तर काफी निचला है। बिहार के लोग डिग्री धारी हैं लेकिन उनमें ज्ञान का अभाव है। ऐसा नहीं है आज के समय में बिहार की स्थिति में बदलवा नहीं आया है या बिहार के युवाओं और युवतियों ने देश का नाम रोशन नहीं किया है। लेकिन फिर भी बिहार की बदहाल शिक्षा व्यवस्था आज सवालों के घेरे में हैं और सरकार के प्रयास शिक्षा के क्षेत्र में शून्य दिखाई दे रहे हैं। ऐसा इसलिए क्योंकि आकड़े बता रहे हैं कि आज भी बिहार में शिक्षा प्राथमिकता नहीं है। सरकार से लेकर परिवार तक शिक्षा को महत्वपूर्ण नहीं समझता। इसमें हम परिवार को दोष भी नहीं दे सकते शायद शिक्षा के क्षेत्र में बिहार सरकार ने उतने कड़े कदम ही नहीं उठाए कि परिवार अपने बच्चों को शिक्षित करने के विषय में विचार करें –

जानें क्या है बिहार की शिक्षा का स्तर –

बिहार में आज भी शिक्षा का स्तर शून्य है। अभिभावकों के लिए शिक्षा प्राथमिकता नहीं है। सरकार शिक्षा के क्षेत्र में कोई बेहतर कार्य करने को तैयार नहीं है। अधिकारियों के मुताबिक़ बिहार में बच्चे सरकारी स्कूल में दाखिला तो लेते हैं लेकिन वह स्कूल नहीं आते। उनका उद्देश्य सिर्फ सरकारी योजना का लाभ उठाना होता है। अभिभावक भी इसी से संतुष्ट हैं। हालाकि एनुअल स्टेट्स ऑफ एडुकेशन रिपोर्ट (एएसईआर) के अनुसार बिहार के सरकारी स्कूलों में एडमिशन लेने वाले बच्चों की संख्या में वृद्धि हुई है। बिहार सरकार इसे अपनी बड़ी उपलब्धि बताती है। लेकिन सत्य तो सरकारी योजनाओं का लाभ है। 

जमीनी स्तर की बात करें तो आज भी बिहार के सरकारी स्कूल में बच्चे भोजन,कपड़ा और वजीफा के लालच में दाखिला लेता है और पढ़ने जाते हैं। शिक्षक ज्ञान देने की जगह स्कूल में आराम फरमाने आते हैं। बच्चों को कुछ पढ़ाने से पहले अपनी रात की नींद पूरी करते हैं और गप्पे लड़ाते हैं। हाँ यदि कोई काम पड़ गया तो वह भी मासूम बच्चों से करवा लेते हैं।

बिहार में जो अभिभावक सम्पन्न हैं वह तो अपने बच्चों को बेहतरीन अंग्रेजी माध्यम के स्कूलों में पढ़ाते हैं और खूब पैसा लगाकर उनको बड़ा अधिकारी बना लेते हैं। लेकिन गरीब के पास यह सपना देखने का भी हक नहीं है। यदि वह गलती से सपना देख भी ले तो उस सपने को स्वाहा बिहार सरकार का सरकारी एजुकेशन सिस्टम कर देगा। जहाँ पढ़कर बच्चें अपना बौद्धिक विकास तो कतई नहीं कर पा रहे हैं। 

बिहार का एजुकेशन सिस्टम सुधारने के लिए क्या करे सरकार –

बिहार में आज भी शिक्षा का स्तर गिरा हुआ है। अन्य राज्यों में बिहारियों को कई तरह की समस्याओं का सामना करना पड़ता है। जिनके पास धन है वह अपने बच्चों को उम्दा प्राइवेट स्कूलों में पढ़ाते हैं और उनके बेहतर भविष्य के सपने देखते हैं। लेकिन गरीब का बच्चा न अच्छी शिक्षा ग्रहण करता है और न ही अभिभावक अपने बच्चों के बेहतर भविष्य के सपने देख पाते हैं। गरीब की इस लाचारी के लिए यदि कोई जिम्मेदार है तो वह है बिहार सरकार। बिहार सरकार को बिहार की शिक्षा व्यवस्था में सुधार करने के लिए यह कुछ काम जरूर करने चाहिए- 

यदि वास्तव में बिहार सरकार चाहती है कि बिहार में सरकारी स्कूलों की शिक्षा व्यवस्था बेहतर हो तो सबसे पहले अध्यापकों के साथ सख्ती से पेश आए। उनको आराम का नहीं काम करने का पैसा दे। आय दिन सरकारी स्कूलों में चेकिंग बैठाए। एक कमिटी गठित करें जो शिक्षकों के कार्य का आकलन करे। शिक्षकों को निर्देश दें कि यदि वह बच्चों को उचित शिक्षा नहीं देंगे तो उनके खिलाफ सख्त कार्यवाही होगी। समय -समय पर स्कूलों में बच्चों के कौशल को जांचने के लिए प्रतियोगिता का आयोजन करवाएं। 

इसके अलावा बिहार के सभी जिलों के शिक्षा के संदर्भ में जागरूकता अभियान शुरू करने चाहिए। अभिभावकों को शिक्षा का महत्व बताना चाहिए। उन्हें समझाने का प्रयास करना चाहिए कि से आप सर्वश्रेठ बनते हैं। आपको आपके सपने पूरे करने का हौसला मिलेगा और आपके प्रयास से राज्य का विकास संभव होगा। 

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