सुप्रीम कोर्ट ने समलैंगिक विवाह के संदर्भ में दायर 18 याचिकाओं पर सुनवाई करते हुए समलैंगिक जोड़े को शादी की मान्यता देने से इनकार कर दिया। सुप्रीम कोर्ट ने कहा – यह विधायिका का क्षेत्र है समलैंगिक विवाह के परिपेक्ष्य में निर्णय पार्लियामेंट से आना चाहिए। चीफ जस्टिस डी वाई चंद्रचूड़ ने कहा कि सुप्रीम कोर्ट विशेष विवाह अधिनियम के प्रावधानों को रद्द नहीं कर सकती। साथ ही समलैंगिक समुदाय के खिलाफ हो रहे भेदभाव को लेकर कई दिशा निर्देश जारी किए हैं। सीजेआई, जस्टिस कौल, जस्टिस एस रवींद्र भट्ट और जस्टिस पीएस नरसिम्हा ,जस्टिस हिमा कोहली सभी ने अलग -अलग मत के साथ अपना फैसला सुनाया।
बच्चा गोद लेने के अधिकार से किसने जताई आपत्ति:
चीफ जस्टिस डी वाई चंद्रचूड़ ने समलैंगिक जोड़ो को विवाह की अनुमति देने से इनकार करते हुए कहा यह विधायिका का क्षेत्र है। संसद को समलैंगिक समुदाय को ध्यान में रखते हुए उनकी मांग पर चर्चा करनी चाहिए। चीफ जस्टिस डी वाई चंद्रचूड़ ने समलैंगिक जोड़ों को बच्चा गोद लेने का अधिकार दिया। हालाकि उनके इस फैसले का जस्टिस एस रवींद्र भट्ट ने विरोध किया। उन्होंने यह भी कहा कि चीफ जस्टिस के इस फैसले से मैं सहमत हूँ कि शादी करना हमारा मौलिक अधिकार नहीं है। लेकिन सेम सेक्स मैरिज को असंवैधानिक नहीं है। विषमलैंगिक संबंधों के तहत ट्रांसजेंडर व्यक्तियों को SMA के तहत शादी करने का अधिकार है।
क्या कहती है सरकार:
सरकार का कहना है समलैंगिक विवाह समाजिक व्यवस्था के खिलाफ है। यह देश की संस्कृति, परम्परा और समाजिक ढांचे को प्रभावित करेगी। समलैंगिक विवाह को मान्यता देना आसान नहीं है। ऐसा करने के लिए पर्सनल लॉ के 28 कानूनों के 160 प्रावधानों में परिवर्तन करना पड़ेगा। जो आसान नहीं है। बता दें साल 2018 में समलैंगिक विवाह को सुप्रीम कोर्ट ने अपराध के दायरे से बाहर किया था। 33 देश ऐसे हैं जहां समलैंगिक विवाह को मान्यता मिली है। 2018 के फैसले से पूर्व IPC की धारा 377 के तहत समलैंगिक संबंधों को अपराध माना जाता था।