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Death Philosophy: मृत्यु के सत्य से कोई मुख नहीं फेर सकता। इस धरा पर जिसका जन्म हुआ है उसकी मृत्यु निश्चित है। मृत्यु की न कोई समय सीमा है न कोई रूप यह कभी भी किसी को आ सकती है। धर्म ग्रंथो में मृत्यु का वर्णन किया गया है। मनुष्य को समझाया गया है कि मृत्यु को अमृतत्व का वरदान प्राप्त करने वाला रावण भी नहीं जीत सका था। इसलिए किसी को भी मृत्यु से भयभीत नहीं होना चाहिए। ईश्वर सभी को जीवन सुख-दुःख उतना ही देता है जितने की इस संसार को उससे आवश्यकता होती है। 

अब सवाल यह भी उठता है कि मृत्यु की उम्र क्या है। क्या यह निर्धारित है या नहीं। क्योंकि पहले के समय में मृत्यु तो हजार वर्ष की उम्र के बाद होती थी। लेकिन आज मृत्यु 80-100 वर्ष में ही हो जाती है। आखिर इतना अंतर क्यों। धर्म ग्रंथो के मुताबिक मृत्यु व्यक्ति के कर्म पर निर्भर करती है यदि व्यक्ति अच्छे कर्म करता है तो उसकी मृत्यु की आयु बढ़ जाती है। लेकिन यदि कोई निकृष्ट कर्म करता है तो उसकी मृत्यु जल्द ही होती है। 

जानें पहले के लोगों की आयु क्यों होती थी अधिक –

शास्त्रों के मुताबिक़ मृत्यु सत्य है लेकिन पुरातन काल में लोग बलशाली और अधिक समय तक जीवित रहने वाले होते थे। इसका एक मात्र कारण उनकी तपस्या, सौमन्यता ,धैर्य, स्वीकृति और समर्पण होता था। पहले के मनुष्य स्वयं को दीर्घायु रखने के लिए अपनी इच्छाओं पर नियंत्रण रखते थे। ईश्वर का ध्यान करना उनका नियमित कार्य था। रिश्तों के प्रति उनका समर्पण रहता था। माता-पिता का सम्मान करना, बड़े -छोटे के बीच सामंजय बनाकर रखना, वर्षों तक बिना भोजन के रहते थे और उनके इस तप और त्याग के प्रभाव से उनकी आयु हजारों वर्ष तक रहती थी। 

आज क्यों हो रही है लोगों की उम्र कम –

आज के समय में लोग धर्म के मार्ग से विमुख हो गए हैं। उनकी इच्छाओं ने उनका पतन शुरू कर दिया है। अभिमान व्यक्ति की उम्र को कम करता जा रहा है। वाणी की शालीनता मानो नष्ट हो गई है। बड़े-छोटों का आदर सम्मान करना उनके स्वाभाव में नहीं है। माता-पिता को बच्चे वृद्धा आश्रम भेज रहे हैं। अपने स्वार्थ के लिए किसी को भी हानि पहुंचा सकते हैं। अपनों को धोखा देने के आतुर हैं। जिसके चलते लोगों की मृत्यु कम होती जा रही है और व्यक्ति का पतन कम उम्र में हो जाता है।