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हिन्दुओं का प्रमुख ग्रन्थ भगवत गीता न सिर्फ लोगों को धर्म का मार्ग दिखाता है। अपितु उनको सत्य के मार्ग पर चलने की प्रेरणा भी देता है। भगवत गीता में भगवान श्री कृष्ण ने अर्जुन को उपदेश दिया और उन्हें धर्म का मूल समझाया। गीता मनुष्य के जीवन को सत्य से जोड़ती है। जिस व्यक्ति को सत्य का ज्ञान हो जाता है वह जीवन के मूल्य को समझ जाता है। गीता में श्री कृष्ण ने कुछ ऐसी बाते कहीं हैं जो यह बताती हैं कि मनुष्य की बर्बादी का कारण क्या है –

श्री कृष्ण कहते हैं जो व्यक्ति नींद का अभिलाषी होता है, दूसरों की निंदा करता है, स्वयं के लाभ के विषय में सोचता है, दूसरों का हक़ मारना चाहता है और अपने कार्यों को सदैव टालता रहता है। वह अपने जीवन में कभी भी आगे नहीं बढ़ पाता है और सदैव उसे निराशा का सामना करना पड़ सकता है। 

श्री कृष्ण कहते हैं जब व्यक्ति अत्यधिक दुखी होता या अत्यधिक सुखी होता है तो उसे कभी भी अपने जीवन का निर्णय नहीं लेना चाहिए। क्योंकि सुख और दुःख की स्थिति में मनुष्य भावुक होता है और भाव में बहकर कई बार अनैतिक निर्णय लेता है। 

श्री कृष्ण का मत है कि धैर्य ही सबसे बड़ा धन है। जो व्यक्ति धैर्य रखना जानता है वह अपने जीवन में प्रत्येक परिस्थिति को स्वीकारना जानता है। धैर्यवान व्यक्ति में खूब हौसला होता है वह अपने हौसले से प्रत्येक विपरीत परिस्थिति से उभर सकता है और अपने लिए सफलता के मार्ग स्वयं खोल सकता है। 

श्री कृष्ण के मुताबिक़ व्यक्ति में इतना सामर्थ्य होना आवश्यक है कि वह स्वयं को बदल सके और परिस्थितियों को स्वीकार कर सके। जो व्यक्ति स्वयं को बदलने की प्रवृति रखता है। वह व्यक्ति जीवन में प्रत्येक परिस्थिति में प्रसन्न रहता है और अपने लक्ष्य की तरफ धीरे-धीरे आगे बढ़ता है।