पितृ पक्ष, जिसे श्राद्ध पक्ष भी कहा जाता है, हिन्दू धर्म में एक महत्वपूर्ण पितृतर्पण (अंश-दान) पर्व है, जो अवश्यक रूप से पितरों की आत्मा को शांति प्रदान करने के उद्देश्य से मनाया जाता है। यह पक्ष हिन्दू पंचांग (कैलेंडर) के आधार पर चैत्र मास के कृष्ण पक्ष से शरद् ऋतु के प्रारंभ तक के 15 दिनों तक मनाया जाता है, आमतौर पर सितंबर या अक्टूबर के महीने में।
पितृ पक्ष में हिन्दू लोग अपने पूर्वजों के आत्मा को याद करते हैं और उनके लिए श्राद्ध करते हैं। इसके तहत, वे पितरों के लिए अन्न, जल, और दान आदि का अर्पण करते हैं। इसका मान्यता है कि पितरों की आत्मा को श्राद्ध के माध्यम से सुख और शांति मिलती है और उनका आत्मा स्वर्ग में शांति पा सकता है।
पितृ पक्ष का पालन विशेष रूप से पुत्रों द्वारा किया जाता है, क्योंकि पुत्र अपने पितरों के लिए श्राद्ध करने का परमपरागत दायित्व माने जाते हैं। इस पक्ष के दौरान, लोग मंदिरों और तीर्थस्थलों पर जाकर श्राद्ध करते हैं और पितरों के नाम पर दान भी करते हैं।
पितृ पक्ष का महत्व हिन्दू धर्म में बहुत अधिक माना जाता है और यह परंपरागत रूप से पारंपरिक आचरणों का हिस्सा है। वही इस वर्ष पितृ पक्ष 29 सितंबर से 14 अक्टूबर तक चलेंगे।
जानें पितृ पक्ष नहीं करने चाहिए कौन से काम :
पितृ पक्ष के दौरान, हिन्दू धर्म में कुछ काम वर्जित (अच्छूत) माने जाते हैं, और लोगों को इन कामों का त्याग करने की बात की जाती है। इन कामों को त्यागने से पितरों की आत्मा को शांति मिलने की मान्यता होती है। निम्नलिखित कामों को पितृ पक्ष के दौरान नहीं करना चाहिए:
शुद्धि क्रियाएँ:
पितृ पक्ष में शुद्धि क्रियाएँ जैसे कि उपनयन संस्कार, विवाह, गृहप्रवेश, नामकरण, आदि नहीं की जानी चाहिए।
सुख-सुखी आचरण:
लोगों को आनंदपूर्ण और सुखी आचरण करने से बचना चाहिए। इसमें मनोरंजन, बड़ा भोजन, और विभिन्न प्रकार के आजीवन सुख नहीं शामिल होने चाहिए।
नई खरीददारी:
पितृ पक्ष के दौरान किसी भी प्रकार की नई वस्त्र, गहनों, और यंत्रों की खरीददारी नहीं करनी चाहिए।
विवाद और कलह:
पितृ पक्ष के दौरान विवाद और कलह करने से बचना चाहिए, और अपने परिवार के सभी सदस्यों के साथ शांतिपूर्ण और समाधान स्वरूप व्यवहार करना चाहिए।
श्राद्ध के नियमों का उल्लंघन:
पितृ पक्ष में श्राद्ध के नियमों का उल्लंघन करने से बचना चाहिए, जैसे कि उच्चिष्ट (श्राद्ध भोजन) को अशुद्ध धर्म के अनुसार नहीं खाना चाहिए।
पितृ पक्ष के दौरान, लोगों को अपने पितरों के प्रति समर्पित और आदर्श व्यवहार का पालन करना चाहिए, ताकि पितरों की आत्मा को शांति प्राप्त हो सके।