देश का सर्वश्रेष्ठ डॉक्टर- इंजीनियर कोचिंग स्थल कोटा आज मौत का घर बन गया है। परिजन उम्मीदों के साथ अपने बच्चों को कोटा भेजते हैं और जब बच्चे अपने लक्ष्य में सफल नहीं होते। तो आत्महत्या का मार्ग चुन लेते हैं। बीते 27 अगस्त को कोटा में दो बच्चों ने आत्महत्या कर ली। बीते 8 महीनें में यहां 24 सुसाइड केस सामने आए। यह विषय चिंता का है कि आखिर बच्चे इतना कमजोर क्यों हो रहे हैं। क्यों उनको असफलता के बाद सिर्फ आत्महत्या का मार्ग दिखाई देता है। क्यों वह सिर्फ सफलता स्वीकारना चाहते हैं।
वास्तव में आत्महत्या कोई आसान काम नहीं है। लोग आत्महत्या के विषय में सोच सकते हैं लेकिन उसे करने के लिए बड़ी हिम्मत चाहिए। जब कोई व्यक्ति आत्महत्या करता है तो वह अपने लक्ष्य से नहीं बल्कि लोगों की उम्मीदों से हार जाता है। कोटा में हो या अन्य कहीं जब कोई छात्र स्वयं को मौत की गोद में सुलाने की लिए आगे बढ़ता है तो उसका कारण उसके आस-पास के लोग ही होते हैं। क्योंकि बच्चे क्या करना चाहते हैं यह जानने से पूर्व ही परिजन उसे यह बता देते हैं कि उसे अपने भविष्य में क्या करना है। कभी कोई उनकी इच्छा जानने का प्रयास ही नहीं करता सिवाय उसे यह बताने के लिए हम तुमको किस रूप में देखना चाहते हैं।
जो लोग आज आत्महत्या की तरफ बढ़ रहे हैं उनके कमजोर होने का कारण उनकी असफलता से अधिक परिजनों या उनके आस पड़ोस के लोगों की उम्मीदें हैं। क्योंकि बचपन से लोग बच्चों को टॉपर, हाई परसेंट, हमेशा जीतने का ज्ञान देते हैं। कभी उन्हें यह नहीं बताते कि हमें जीतने के लिए हार भी स्वीकार करनी पड़ेगी या जब तुम संघर्ष करोगे अपने लक्ष्य की प्राप्ति के लिए तो हम तुम्हें जीतने नहीं बल्कि प्रयास करते देखना चाहते हैं। क्योंकि जीत हार जीवन में लगा रहता है महत्वपूर्ण यह है कि आपने प्रयास किया।
परिजन बच्चों की हार को स्वीकार नहीं करते। बल्कि जब वह हारते हैं तो उन्हें समाज की कई दलीलें देते हैं। परिजनों की उम्मीदें और समाजिक दलीलों का प्रेशर उनके मन को इतना कमजोर बना देता है कि वह सभी की उम्मीदों का अंत स्वयं के अंत से कर देते हैं। हाँ बाद में परिजनों को अफ़सोस होता है कि काश हम उसे समझ पाते। उसके मन की हलचल को सुनते, उसका साथ देते या उसे उसकी इच्छाओं के साथ स्वतंत्रत रखते। लेकिन यह सब हमेशा बाद में ही याद आता है। इतनी बाद में कि तब उस विषय में सिर्फ सोचा जा सकता है।
आय दिन बच्चे पढ़ाई के पेशर में आकर आत्महत्या कर रहे हैं। इसे अगर कोई रोक सकता है तो आप लोग रोक सकते हैं। आप बचपन से यह धारण न बनाएं की आपका बच्चा बड़ा होकर क्या करेगा। बल्कि उसे स्वतंत्र रहने दें। उसके सपनों को पूरा करने में उसके सहयोगी बनें। उम्मीद लगाने से अधिक उसका सहारा बनें। उसे असफलता स्वीकार करना सिखाएं पर सबसे महत्वपूर्ण समाज के भय से भयभीत होकर बच्चों कोई भी मानसिक दबाव न बनाएं। क्योंकि आपको अनुभूति नहीं होगी, आपको लगेगा कि आप अपने बच्चों का हित कर रहे हैं। लेकिन आपकी समाजिक बेड़ियाँ और आपकी इच्छाएं उसे कमजोर बना देंगी इतना कमजोर की पहले उसके मन में उसकी इच्छाएं मर जाएगी और जब वह आपकी उम्मीदों पर खरा नहीं उतरेगा तो स्वयं।